देहरादून। गढ़वाली भाषा में डॉ. उमेश चमोला की शेक्सपियर के नाटकों की अनुवाद पुस्तक ‘गडोळि’ विधिवत लोकार्पण किया गया। वक्ताओं ने कहा कि अपनी लोक भाषाओं का संरक्षण हम सब की जिम्मेदारी है। उन्होंने विश्व साहित्य को गढ़वाली भाषा में अनुदित करने पर डॉ. चमोला की सराहना भी की।
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के गंगा सभागार में काव्यांश प्रकाशन और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा आयोजित समारोह में मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार रावत, डायट के प्राचार्य राकेश जुगरान, साहित्यकार रमाकांत बेंजवाल, डॉ. नंदकिशोर हटवाल, फाउंडेशन के भाषा संदर्भदाता अशोक मिश्र और डिस्ट्रिक्ट को-आर्डीनेटर रवींद्र सिंह जीना ने अनुदित पुस्तक गडोळि का लोकार्पण किया।
बतौर मुख्य अतिथि मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार रावत ने कहा कि जैसे किसी जैव प्रजाति का विलोपन से जैव विविधता प्रभावित होती है, वैसे ही किसी भाषा के लोप से सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक भाषा स्थानीय परिवेश की इकोलॉजी का हिस्सा है, इसलिए हम सब की जिम्मेदारी है कि हम अपनी लोक भाषाओं का संरक्षण करें।
डायट के प्राचार्य राकेश जुगरान ने कहा कि विदेशी भाषा को समझने-जानने के लिए लेखक की कृतियों को क्षेत्रीय भाषा में प्रस्तुत करना एक विशिष्ट कौशल है। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी क्षेत्रीय भाषाओं में वैश्विक साहित्य के अनुवाद के महत्व को रेखांकित करती है। आम आदमी के लिए साहित्य को सरल रूप में प्रस्तुत करने के लिए लेखक साधुवाद के पात्र हैं।
गढ़वाली भाषा के शोधकर्ता रमाकांत बेंजवाल ने लेखक और प्रकाशक की सराहना की। कहा कि लोकभाषा संरक्षण के लिए पाठकों तक लोकभाषाओं में लिखे विश्वस्तरीय साहित्य को पाठकों तक पहुंचाना एक बड़ी उपलब्धि है। साहित्यकार डॉ. नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि भाषा और बोली कोई अलग-अलग अवधारणाएं नहीं है। गढ़वाली को भाषा न मानकर बोली के रूप में देखा जाना बिल्कुल गलत है। गढ़वाली भाषा इतनी समृद्ध भाषा है कि यह किसी भी विश्वस्तरीय भाषा के सामने चुनौती प्रस्तुत कर सकती है।
उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की ताकत को मापने का एक मानदंड यह भी है कि उस भाषा में अन्य भाषाओं से अनुदित कितना साहित्य उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त लोकगीत, लोककथा आदि भी भाषा की शक्तियों में शामिल होते हैं, इसलिए प्रचुर मात्रा में गढ़वाली भाषा में मौलिक और अनुदित साहित्य के साथ लोकसाहित्य को उपलब्ध कराना भी हमारी जिम्मेदारी बन जाती है।
लेखक डॉ. उमेश चमोला ने बताया कि विश्व साहित्य को गढ़वाली भाषा में उपलब्ध कराने के दृष्टिगत वर्ष 2020 में उनके द्वारा लियो टालस्टाय की 16 कहानियों का अनुवाद गढ़वाली भाषा में ’छः फुटै जमीन’ नामक किताब के रूप में प्रकाशित हुआ था। जिसकी सफलता और पाठकों की सराहना के प्रतिफल के रूप में उन्हें शेक्सपियर के नाटकों को कथांतरित कर गढ़वाली भाषा में प्रकाशित करने की प्रेरणा मिली। शेक्सपियर के जूलियस सीजर, ओथेलो, हैमलेट, मर्चेंट ऑफ वेनिस जैसे 10 प्रसिद्ध नाटकों का गढ़वाली भाषा में कहानियों के रूप में रूपांतरण इस पुस्तक में किया गया है।
काव्यांश प्रकाशन के प्रबोध उनियाल ने बताया कि उनका प्रकाशन उत्तराखंड के प्रमुख साहित्यकारों के स्तरीय साहित्य को प्रकाशित करने की दिशा में प्रयासरत है। बताया कि इस पुस्तक लेखक डॉ उमेश चमोला का अनेक वर्षों का लेखन, संपादन और अनुवाद का अनुभव है। इनकी कृतियां विश्वविद्यालय एवं विद्यालय स्तरीय छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। काव्यांश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डा. चमोला की यह पुस्तक गढ़वाली भाषा के पाठकों को अवश्य पसंद आएगी। उन्होंने आयोजन में सहयोग के लिए अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के पदाधिकारियों, उपस्थित साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन अशोक कुमार मिश्र ने किया। इस अवसर पर कथाकार शूरवीर सिंह रावत, डॉ. सत्यानंद बडोनी, एसपी नौटियाल, प्रदीप बहुगुणा ’दर्पण’, फाउंडेशन के स्टेट हेड शोभन सिंह नेगी, मोहन पाठक, डॉ. उषा कटियार, जगमोहन चोपता, डॉ. मनोज कुमार शुक्ल, डॉ विपिन चौहान, शिवाली ढौंडियाल, सुनील भट्ट, राजेश खत्री, मोहन प्रसाद डिमरी, प्रतिभा कटियार, गोपाल घुगत्याल, नितिन कुमार, प्रिया गुसाईं आदि मौजूद रहे।