देवस्थान

‘देवस्थानम एक्ट’ पर सरकार का ‘आखिरी फैसेला’ करीब

मंत्रिमंडलीय उपसमिति की रिपोर्ट के बाद लग रहे बोर्ड भंग होने के कयास

उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम के मामले में राज्य सरकार यूटर्न को तैयार लग रही है। प्रकरण में सरकार को मिली हाईपावर कमेटी की दो रिपोर्ट के अध्ययन के बाद मंत्रिमंडलीय उपसमिति की रिपोर्ट भी मिल चुकी है। बताया जा रहा है कि इसमें देवस्थानम एक्ट को वापस लेने की सिफारिश की गई है। हालांकि इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। जिसके बाद देवस्थानम एक्ट को जल्द वापस ले सकती है। जिसे विधानसभा चुनाव और राजनीतिक दबाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है।

15 जून 2020 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम का पहले दिन से ही विरोध शुरू हो चुका था। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहितों, हकहकूक धारियों के लगातार विरोध और आंदोलन के बावजूद सरकार उन्हें मनाने के हरसंभव कोशिशें करती रही। प्रधानमंत्री मोदी के केदारनाथ दौरे पर आंदोलन का साया न पड़े इसके लिए वरिष्ठ मंत्रियों को केदारनाथ भेजकर पुरोहितों को शांत किया गया। लेकिन तब भी पुरोहितों का रोष कम नहीं हुआ। आंदोलन की आंच देहरादून पहुंची, तो सरकार ने इस प्रकरण के समाधान की कवायद तेज की।

एक दिन पहले कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में गठित मंत्रिमंडलीय उपसमिति द्वारा उत्तराखंड देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड पर हाईपावन कमेटी रिपोर्ट के अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है। इससे पूर्व सीएम ने बोर्ड के विवादित मामले के निपटारे के लिए पूर्व सांसद मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित की थी। जिसकी दो रिपोर्टस् का मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने बीते दिनों अध्ययन किया। उपसमिति में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल और स्वामी यतीश्वरानंद बतौर सदस्य शामिल हैं।

तीर्थ पुरोहितों के भारी दबाव, आगामी विधानसभा चुनाव और सभी रिपोर्टस् के तेजी से समिट होने पर माना जा रहा है कि सरकार यूटर्न की दिशा में आगे बढ़ रही है। हालांकि इसपर अभी अंतिम निर्णय आना बाकी है। जो कि प्रधानमंत्री के दौरे से पहले या विधानसभा सत्र के दौरान भी आ सकता है।

मीडिया रिपोर्टस् में कहा जा रहा है कि अगर देवस्थानम बोर्ड को भंग किया जाता है तो यह तीर्थ पुरोहितों के अपने पारंपरिक वोट को बांधे रखने, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी द्वारा अपनी सरकार आने पर बोर्ड को समाप्त करने के ऐलान के साथ ही विपक्ष का इसे जोरशोर से मुद्दा बनाने के दबाव का परिणाम होगा। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कोई भी सरकार चुनावी वर्ष में जनता के बीच खुद के लिए नकारात्मक माहौल नहीं चाहती। यहां ऐसा वर्ग नाराज है जो कि भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है।

यह भी तय है कि बोर्ड के भंग होने की स्थिति के बाद सरकार और भाजपा जहां अपने निर्णय को जनभावनाओं के सम्मान के रूप में दर्शाएगी, वहीं विपक्ष खासकर कांग्रेस इसे ‘तीर्थ पुरोहितों को जीत’ का श्रेय देकर अपनी राजनीतिक ताकत को दिखाने की कोशिश भी निश्चित करेगी। विधानसभा चुनाव पर इसका क्या असर रहेगा, यह तो जनता ही तय करेगी।

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