
Ekkisvin Sadi Ki Ek Dilchasp Daud: वरिष्ठ कथाकार सुभाष पंत का हाल ही में आया कथासंग्रह ’इक्कीसवीं सदी की एक दिलचस्प दौड़’ चौदह कहानियों का संकलन है। उनकी रचनाओं में एक खासबात देखने को मिलती है कि वे आसपास के परिवेश का जायजा लेते हैं और उन स्थितियों को बखूबी बुनते-उकेरते हैं। बाजारवाद की चकाचौंध, मानव-अस्मिता पर गहराता संकट और आम आदमी पर पड़ता उसका प्रभाव उनके साहित्य में गाहे-बगाहे आ ही जाता है।
समीक्ष्य-संग्रह ’इक्कीसवीं सदी की एक दिलचस्प दौड़ की कहानियों में भी बदलते जीवन-संदर्भों में आम आदमी की पक्षधरता उनकी कहानियों का बुनियादी स्वर है।
चाहे वो रुल्दूराम हो या बूढ़ा रिक्शाचालक, ये ऐसे मामूली इंसान हैं, जिनकी कोई सुध नहीं लेता, जिन्हें वजूद में होने के बावजूद भी अनुपस्थित मान लिया जाता है। रुल्दूराम का मृत्युपूर्व एक दिन विज्ञापन जगत के नाम होम हो जाता है। उसी तरह से एनएसडी का एक छात्र भूख से दम तोड़ते एक बूढ़े रिक्शाचालक का चित्र क्या बनाता है, कि उसे देखकर दो फूल सी नाजुक महिलाएं बेहोश हो जाती हैं तो उस पर बाकायदा ट्रायल चलता है।
चाहे वो दर्जी की सिली कमीज बनाम ब्रांडेड कमीज का जहीन टेलर मास्टर हो या ’मामूली बात’ का गुमशुदा इंसान, ये दोनों कहानियां भूमंडलीकरण में चुपचाप, बिना आवाज के खोते उद्योगों और इंसानों के दर्द को हस्बेहाल बयां करती हैं।
सूदखोरों के दुष्चक्र में फंसे दमारोगी खलासी की मौत पर रचनाकार एक ही सवाल उठाते हैं कि क्या उसे दमे के अति सामान्य दौरे ने मारा या इच्छामृत्यु ने, ताकि उसके बेटे को अनुकंपा नियुक्ति मिल सके।
सोफे पर साधिकार कूदने वाले कुलीन श्वान पर आधारित कहानी ’कथानायक’ बदलते दौर में एक मध्यमवर्गीय परिवार के आचार-विचार-व्यवहार में आए परिवर्तन की कहानी है। जहां ’एक का पहाड़ा’ गिरती दीवारें संभालते एक जीवट पिता की कहानी है तो वहीं उपेक्षिता रुक्मा, पतिस्नेह से वंचित होने के बावजूद साहस और स्वावलंबन की प्रतिमूर्ति बनकर उभरती है।
प्रतिनिधि कहानी ’इक्कीसवीं सदी की एक दिलचस्प दौड़’ हो या छगन भाई का हाथी, मिकदार के हिसाब से सुभाष पंत जी फैंटेसी का गाहेबगाहे इस्तेमाल करते रहते हैं।
उनकी चुटीली और मुहावरेदार भाषा में तर्क श्रृंखला खत्म होने का नाम नहीं लेती। अनुभवशील जीवनदृष्टि से उपजा उनका गद्य पाठक के लिए सहजविश्वासी बन जाता है। उनकी कहानियों में प्रायः वैयक्तिकता की रक्षा के साथ सामाजिकता का आग्रह दिखलाई पड़ता है, मानो वे नई पीढ़ी को सोचने-समझने का एक और अवसर देना चाहते हों।
समीक्ष्य-पुस्तकः ’इक्कीसवीं सदी की एक दिलचस्प दौड़’
प्रकाशकः काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश।
रचनाकारः सुभाष पंत
समीक्षकः ललित मोहन रयाल