होलीः इस दिन बन रहे 4 लाभकारी संयोग
यह है होली दहन का शुभ मुहूर्त और विधान, ऐसे मनाएं त्योहार
Holi 2022: प्रकृति से लेकर सामाजिक तानाबाने में रंगों के त्योहार होली की छटा बिखरने लगी है। मगर, इस वर्ष होली का पर्व ज्योतिषीय दृष्टि से बीते 100 वर्षों में अपने साथ चार तरह के शुभ संयोग भी ला रहा है। जो कि पुण्य और कार्य सिद्धि को प्रशस्त करेंगे। इसके साथ ही इस दिन त्रिग्रही योग भी बन रहा है। होलिका उत्सव को शुभ मुहूर्त में मनाने से यह विशेष योग उत्साह और उल्लास का संचार करेंगे।
वैदिक ब्राह्मण सभा के प्रवक्ता डॉ जनार्दन कैरवान के अनुसार लगभग 100 साल में पहली बार विशेष संयोग बन रहा है। ग्रह गणना के अनुसार मकर राशि में त्रिग्रही योग बन रहे हैं। मकर में शनि, मंगल और शुक्र ग्रह की युति रहेगी। कुंभ में बृहस्पति और बुध ग्रह रहेंगे। इस दिन वृद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ ही ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। बताया कि वृद्धि योग में किए गए कार्यों से कार्य में वृद्धि का लाभ मिलता है। जबकि सर्वार्थ सिद्धि योग में पुण्य की प्राप्ति होगी। ध्रुव योग से चंद्रमा का सभी राशियों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। वहीं बुध-गुरु की युति से आदित्य योग का निर्माण भी हो रहा है। जो कि शुभ फलदायक है।
होली का शुभ मुहूर्त
फाल्गुन मे मनाया जाने वाला होली का पर्व इस वर्ष चैत्र मास में आया है। इस वर्ष भारतीय पंचांगों के अनुसार 17 मार्च को दिन में 1ः30 पर पूर्णिमा तिथि का आरंभ होगा। इसी दिन होलिका का दहन रात्रि में किया जाएगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 17 मार्च रात्रि में 9ः20 बजे 10ः30 बजे तक रहेगा। यानि 1 घंटा 10 मिनट का होगा। 18 मार्च को रंग तथा फूलों से होली खेली जाएगी।
नए वस्त्र पहनने का है विधान
होलिका दहन के दिन नए वस्त्रों को पहनने का विधान भी है। होलिका दहन से कष्टों की निवृत्ति तथा आरोग्य की वृद्धि होती है। इसके अलावा इसदिन भगवान की नौ प्रकार की भक्ति का भी फल प्राप्त होता है। जिसके सूत्रधार भगवान के परमभक्त प्रह्लाद जी थे।
सनातन धर्म के चार त्योहार
वैदिक सनातन धर्म के अनुसार एक संवत्सर में चार प्रमुख त्योहार आते हैं। जिन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म के चार वर्णों में 14 त्योहार विभाजित किए गए हैं। यथा ब्राह्मणों का प्रमुख पर्व श्रावणी माना जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण बालक वेदाध्ययन आरंभ करते हैं। दूसरा विजयादशमी पर्व है, जिसे क्षत्रियों का प्रमुख त्योहार माना जाता है। उस दिन भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। तीसरा दीपावली का पर्व वैश्यों का प्रमुख त्योहार माना गया है। उसके बाद संवत्सर के अंत में होली का त्योहार मनाया जाता है। होलिका का त्योहार शुद्र वर्ण से जुड़ा माना गया है। हालांकि वर्तमान समय में भारत में सभी वर्णों के लोग सभी पर्वों को मिलजुल कर हर्षोल्लास के साथ मनाने लगे हैं। जो कि सनातन धर्म और संस्कृति की एकता का प्रतीक है।
होली की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भक्त प्रहलाद को मारने का प्रयास किया। उनके पास एक ऐसी चादर थी, जिसमें अग्नि प्रवेश नहीं कर सकती थी और उसने उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। लेकिन प्रह्लाद भगवान के अनन्य भक्त थे, भगवान की कृपा से होलिका की चादर हवा से उड़कर के प्रह्लाद पर पड़ गई। प्रहलाद सुरक्षित हो गए जबकि होलिका जल कर भस्म हो गई।
जब इस बात का पता प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप को चला, तो वह अपने सहयोगियों के साथ वहां पहुंचे। प्रह्लाद उस राख में खेल रहे थे। हिरण्यकश्यप को क्रोध आया और उन्होंने अपने परिकरो के सहित उस राख को क्रोध में इधर-उधर फेंका। वहीं जब प्रह्लाद के जीवित रहने का पता उनके मित्रों को चला तो उन्होंने उस राख से एक दूसरे का तिलक कर खुशी मनाई। आज भी देश में इसी प्रकार होली को बड़े प्रेम और उल्लास से मनाया जाता है।