यहां हर साल अंगारों पर नाचते हैं देवता
गुप्तकाशी के गांवों में बैशाख में आयोजित होता है जाख मेला
उत्तराखंड में जनपद रूद्रप्रयाग के गुप्तकाशी इलाके में देवशाल गांव है। जहां चौदह गांवों के बीच स्थापित जाखराजा मंदिर में हर साल बैशाख माह के प्रारंभ यानि अप्रैल मध्य में जाख मेले (jakh festival) का भव्य आयोजन किया जाता है। मेला आरंभ होने के दो दिन पहले से भक्त लोग नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकड़ियां, पूजा और खाद्य सामग्री इकट्ठा करने में जुट जाते हैं।
इसके साथ ही भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 100 कुंतल लकड़ियों से कोयला बनाया जाता है।
मेले के पहले दिन बैसाखी पर्व पर रात्रि को अग्निकुंड व मंदिर के दोनों दिशाओं में स्थित देवी देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद अग्निकुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है जो पूरी रातभर जलती रहती है। जिसकी रक्षा में नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीण रात्रिभर जागरण करके जाख देवता के नृत्य के लिए अंगारे तैयार करते रहते हैं।
अगले दिन जाख भगवान के पश्वा इन दहकते हुए अंगारों के बीच में नृत्य करतें हैं। जब जाख भगवान के पश्वा नंगे पांव इन दहकते अंगारों में नृत्य करते है तो सभी श्रद्धालुओं के सिर श्रद्धा से झुक जाते हैं। और जाख महाराज के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गूँज उठता है साथ ही भगवान की दैवीय शक्ति से भक्तों का साक्षात्कार होता है।
केदारघाटी (kedar ghati) के संस्कृतिकर्मी लखपत सिंह राणा मान्यताओं के हवाले से बताते है कि जाख देवता यक्ष व कुबेर के रूप में भी पूजे जाते हैं। उनके दिव्य स्वरूप की अलौकिक लीला प्रतिवर्ष अग्निकुंड में दहकते अंगारों पर नृत्य करते हुए दिखती है। अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि से बचने के लिए भी जाख देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। जिस भक्त को जाखराजा का आशीर्वाद मिलता है। उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है।
कोठेड़ा गाँव से दोपहर में देवता की कंडी जाती है। फिर जाख के लिंग का शृंगार होता है। रात को चारों दिशाओं की पूजा होती है भोजन बनता है और फिर मूँडी में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। इस मौके पर देशभर से प्रवासी भी अपने घर लौटते हैं।