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दयनीय स्थिति में है उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषाः कैरवान

ऋषिकेश। उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय महाविद्यालय प्रबंधकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. जनार्दन कैरवान ने कहा कि संस्कृत भाषा अपने ही प्रदेश में दम तोड़ रही है। संस्कृत अध्यापकों और कर्मचारियों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला है। पिछले डेढ़ साल से तीन-चार महीने से पहले वेतन नहीं मिल पा रहा है।

कैरवान ने बताया कि उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा निदेशालय, संस्कृत शिक्षा परिषद और संस्कृत विश्वविद्यालय भी खस्ताहाल हैं। शिक्षामंत्री हर दूसरे महीने एक बैठक कर अखबारों में बड़ी-बड़ी खबरें छापने तक ही सीमित हैं। बैठकों के निर्णय भी धरातल पर नहीं उतर रहे हैं। कुछ बैठकों के कार्यवृत्त जारी होन के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई।

कैरवान ने दोहराया कि उत्तराखंड संस्कृत अकादमी में मंत्री के स्वयं उपाध्यक्ष बनने के बाद स ेअब तक एकेडमी की कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है। पिछले वर्ष 50 में से केवल 10 योजनाएं भी धरातल पर नहीं उतरी। इस वर्ष भी दो महीने बाद भी अकादमी ने कार्य प्रारंभ नहीं किया है। शासन द्वारा बिना विधि सम्मत उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा परिषद को हरिद्वार भेज दिया गया है। जिससे संस्कृत छात्रों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है।

कैरवान ने बताया कि पूर्व में संस्कृत छात्रों के विरोध पर परिषद कार्यालय को देहरादून शिफ्ट करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन 5 महीने बाद भी निर्देश का अनुपालन नहीं हुआ। बोर्ड के सामने चुनौती है कि वह रिजल्ट हरिद्वार या देहरादून के नाम से जारी करे। क्योंकि एक साल की मार्कशीट में देहरादून लिखा गया है, और अब अगले साल की मार्कशीट में हरिद्वार लिखा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि इससे सब के बावजूद जिम्मेदार मौन हैं। जिससे संस्कृत जगत में खासा रोष है। जल्द ही सकारात्मक निर्णय नहीं लिए गए तो संस्कृत भाषा के पठन पाठन से जुड़े लोग आंदोलन को मजबूर हो सकते हैं।

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