उत्तराखंडः कांग्रेस की ‘तिकड़ी’ और 2027 का लक्ष्य

Uttarakhand Politics : उत्तराखंड कांग्रेस ने हालिया सांगठनिक फेरबदल के ज़रिए 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीतिक तैयारी का पहला संकेत दे दिया है। पार्टी आलाकमान ने गणेश गोदियाल को नया प्रदेश अध्यक्ष, प्रीतम सिंह को प्रचार समिति का अध्यक्ष और डॉ. हरक सिंह रावत को चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाकर राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर संतुलन साधने की कोशिश की है। माना जा रहा है कि यह बदलाव केवल नामों की घोषणा नहीं है, बल्कि उस आंतरिक रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत कांग्रेस उत्तराखंड में अपनी जड़ों को फिर से मजबूत करने का प्रयास कर रही है।
समीकरणों के बीच संतुलन की कोशिश
उत्तराखंड की राजनीति में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। पहाड़ और मैदान, ब्राह्मण और ठाकुर, पुराना संगठन और नया नेतृत्व, इन सबके बीच संतुलन साधना किसी भी पार्टी के लिए चुनौती रहा है। कांग्रेस ने इस बार एक साथ तीनों परतों को साधने की कोशिश की है। गणेश गोदियाल को ब्राह्मण समाज से आने वाले सुलझे और स्वीकार्य नेता के रूप में देखा जा रहा है। जबकि प्रीतम सिंह को संगठन के अनुभवी और पहाड़ के सशक्त जनाधार वाले चेहरे माने जाते हैं। वहीं, डॉ. हरक सिंह रावत राजनीतिक मैदान के पुराने खिलाड़ी हैं। जिनका संपर्क सत्ता और संगठन दोनों में गहरा है। ऐसे में इस तिकड़ी के ज़रिए कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी अब गुटबाजी से आगे बढ़कर सामूहिक नेतृत्व की दिशा में कदम रख रही है।
हरदा का ‘ब्राह्मण कार्ड’!
उत्तराखंड कांग्रेस में इन नियुक्तियों के पीछे पूर्व सीएम और वरिष्ठ नेता हरीश रावत का प्रभाव माना जा रहा है। संगठन में उनका सुझाव और हस्तक्षेप दोनों इस प्रक्रिया में अहम बताए जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे “हरदा का ब्राह्मण कार्ड” बता रहे हैं। एक ऐसा दांव जिससे पार्टी न केवल ब्राह्मण वोट बैंक को साधना चाहती है, बल्कि यह भी दिखाना चाहती है कि हरीश रावत अभी भी उत्तराखंड कांग्रेस की धुरी बने हुए हैं। वहीं 27 जिलाध्यक्षों की सूची में भी हरदा का प्रभाव साफ झलकता है, जो यह दर्शाता है कि कांग्रेस आलाकमान ने संगठन को एक बार फिर ‘मैदान के नेताओं’ के हवाले करने की नीति अपनाई है।
2027 की रणनीतिक तैयारी
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता से थोड़ी दूरी पर रह गई थी। उस समय संगठन की कमजोरी और रणनीतिक असंतुलन को पार्टी ने अपनी सबसे बड़ी चूक माना था। अब यह फेरबदल उसी कमी को दूर करने का प्रयास बताया जा रहा है। नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल जैसे शांत लेकिन संगठित नेतृत्व के साथ, प्रीतम सिंह की जनस्वीकृति और हरक सिंह रावत की चुनावी समझ पार्टी को जमीनी स्तर पर फिर से सक्रिय कर सकती है। इसके साथ ही, कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यह संदेश भी देना चाहता है कि उत्तराखंड में पार्टी अब केवल हरीश रावत पर निर्भर नहीं, बल्कि एक संतुलित टीमवर्क की दिशा में बढ़ रही है।
राजनीतिक संदेश और भविष्य की चुनौती
कांग्रेस का यह कदम दोहरी रणनीति का हिस्सा भी कहा जा रहा है। एक ओर संगठन को नई दिशा देना, दूसरी ओर जनता को यह दिखाना कि पार्टी में अनुभव और युवाओं का संतुलित मेल है। हालांकि, असली परीक्षा अब इस टीम की कार्यशैली और परस्पर तालमेल में होगी। यदि यह तिकड़ी एकजुट होकर काम करती है, तो 2027 में कांग्रेस उत्तराखंड की राजनीति में फिर से मजबूत दावेदारी पेश कर सकती है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड कांग्रेस का यह सांगठनिक बदलाव केवल पदों की अदला-बदली नहीं, बल्कि एक स्पष्ट राजनीतिक संकेत है कि पार्टी अब गुटीय राजनीति से ऊपर उठकर सामाजिक संतुलन, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और संगठनात्मक मजबूती की दिशा में चलना चाहती है। एक तीर से तीन निशाने की इस रणनीति में ब्राह्मण संतुलन, अनुभवजन्य नेतृत्व और हरदा का प्रभाव, तीनों झलकते हैं। अब देखना यह होगा कि यह “तिकड़ी फार्मूला” 2027 की राह में कांग्रेस के लिए संगठन से सत्ता तक का सफर तय कर पाता है या नहीं।
– धनेश कोठारी



