
देहरादून (दिनेश शास्त्री)। उत्तराखंड में इन दिनों बिजली के स्मार्ट प्रीपेड मीटर का मुद्दा गरमाया हुआ है। निकट भविष्य में इसकी तीव्रता बढ़ने के आसार ज्यादा हैं। विपक्ष के हाथ इस बहाने एक हथियार सा लग गया है। जबकि सरकार जिद पर आमादा है कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर देर सबेर लगने ही हैं। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि स्मार्ट मीटर से बिजली के बिल में चार फीसद तक का बचत हो सकती है। वैसे यह एक प्रलोभन ही है।
याद करें, जब जियो का फोन लॉन्च हुआ तो टैरिफ इतना कम कर दिया था कि लोगों को लगा कि अब तो एक तरह से डाटा फ्री ही हो गया। लेकिन वक्त के साथ भ्रम टूट गया। आज क्या स्थिति है, किसी से छिपी नहीं है। तो क्या स्मार्ट मीटर के मामले में भी यही सब होगा? इस आशंका का समाधान फिलहाल तो कोई नहीं बता सकता। सरकार के तर्क अपनी सुविधा के हैं। सरकार अपना बोझ कम करना चाहती है। इसके लिए यह तरीका अपनाया जा रहा है और जनता लाख विरोध जताए, देर सबेर स्मार्ट मीटर लगने ही हैं, जद्दोजहद कितने दिन चलेगी, यह देखने वाली बात होगी।
ऊर्जा निगम के एमडी का हाल में बयान आया है कि उत्तराखंड में इस समय बिजली चोरी आदि कारणों से 14 फीसद लाइन लॉस है। इसे पारेषण क्षति कहा जाता है। यानी प्रदेश के उपभोक्ता एक तरह से उस लाइन लॉस की कीमत भी चुका रहे हैं। एमडी के मुताबिक स्मार्ट मीटर लगने के बाद यह लाइन लॉस घट कर आधा रह जाएगा और करीब 500 करोड़ रुपए ऊर्जा निगम का घाटा कम हो जाएगा। तो आगे से वह बिजली दर बढ़ाने का प्रस्ताव उसी अनुरूप रखेगा, यानी बिजली दरें भविष्य में कम बढ़ेंगी। हालांकि इस तर्क पर भरोसा नहीं किया जा सकता। तमाम कोशिश के बाद भी यदि ऊर्जा निगम लाइन लॉस कम करने में नाकाम ही रहा है तो इस बात की गारंटी कोई दे सकता है कि स्मार्ट मीटर समस्या का स्थाई समाधान सिद्ध होगा।
फिलवक्त लोगों का भरोसा जीतने की कोशिश में सरकारी भवनों में स्मार्ट मीटर लगाने की बात हो रही है। जाहिर है उनका बिल सरकार के खजाने से भरा जाएगा। वह बिल कम आए या ज्यादा, उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। सरकारी अफसरों के घरों का बिल हो या मंत्री शंत्री के घर का बिजली का बिल हो, उसका भुगतान तो सरकार करेगी। लोगों को भरोसा एक ही स्थिति में हो सकता है जब दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का हर कार्यकर्ता बोले कि पहले हमारे घर पर स्मार्ट प्रीपेड बिजली मीटर लगाया जाए, जिस तरह एक दशक पहले प्रधानमंत्री ने रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया तो लाखों सक्षम लोगों ने उसे अंगीकृत किया।
उत्तराखंड सरकार के पास भी यह मौका है कि जिस तरह वह कई क्षेत्रों में देश में सबसे आगे रहने के अनेक कामों में पहल कर रही है तो उसकी पार्टी का हर कार्यकर्ता कहे कि उनके निवास पर स्मार्ट प्रीपेड बिजली मीटर लगाया जाए तो उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेशभर के लाखों उपभोक्ता स्वेच्छा से आग्रह कर लेंगे कि सरकार की पहल के साथ वे खड़े होने को तैयार हैं।
वस्तुतः हाल के वर्षों में महंगाई की जो रफ्तार बढ़ी है, खासकर कोराना के बाद आम लोगों की तकलीफ बढ़ी है। यदि ऐसा न होता तो महंगाई की मार से बचाने के लिए उत्तराखंड सरकार पूर्व विधायकों की पेंशन 40 हजार रुपए से बढ़ा कर 60 हजार रुपए नहीं करती। यह एक उदाहरण भर है।
पेंशन बढ़ाने का सीधा सा मतलब है कि महंगाई बढ़ी है, इसलिए पूर्व विधायकों का गुजारा मुश्किल हो रहा था। लिहाजा उन्हें बीस हजार रुपए मासिक की इमदाद देने की मजबूरी हो गई थी। जाहिर है जो लोग आज विधानसभा में हैं, कल उन्हें भी पूर्व हो जाना होगा, इसलिए दूरदृष्टि का तकाजा यही था कि समय रहते इंतजाम कर दिया जाए। खैर यह विषयांतर हो जाएगा। इस विषय पर फिर कभी विमर्श को आगे बढ़ाया जाएगा। तात्कालिक मामला स्मार्ट प्रीपेड बिजली मीटर का है। प्रदेश सरकार ठान चुकी है कि इस काम में अव्वल रहना है तो सारा तंत्र इसी जुगत में लगा है।
रुद्रपुर से शुरू हुआ था विवाद
शुरुआती दौर में स्मार्ट प्रीपेड बिजली मीटर की बात को महकमा खारिज कर रहा था। लेकिन रुद्रपुर में कुछ पत्रकारों ने भंडार में भरे स्मार्ट मीटरों का सजीव प्रसारण कर दिया। तो उनके विरुद्ध कंपनी की तरफ से मुकदमा दर्ज कर दिया गया। उसके बाद तेजतर्रार विधायक तिलकराज बेहड़ ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने तो सड़क पर पटक पटक कर स्मार्ट मीटर तोड़ डाले लेकिन उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की हिम्मत नहीं हुई। निसंदेह जिस कंपनी को स्मार्ट मीटर लगाने का ठेका मिला है उसने प्रदेश में ठीक ठाक स्टॉक तैयार कर रखा है। आखिर करोड़ों का सौदा जो ठहरा। अनुमान है कि प्रदेश में करीब 14 लाख से अधिक वैध बिजली कनेक्शन हैं। अवैध कितने होंगे, किसी को नहीं पता क्योंकि अवैध की पड़ताल करने जब कभी बिजली कर्मी जाते भी हैं तो उन्हें मारपीट कर भगा दिया जाता है। हाल के दिनों में बिजलीकर्मियों पर एक के बाद एक हुए हमले इस बात की तस्दीक करते हैं।
बिजली चोरी रोकना बड़ी चुनौती
उत्तराखंड में इस समय 14 प्रतिशत लाइन लॉस की बात आला अफसर करते हैं। ये लाइन लॉस ही बिजली चोरी है, जिसकी कीमत ईमानदार उपभोक्ता चुका रहे हैं। यहां उस तरह का भय तो है नहीं जिस तरह उत्तर प्रदेश में दंड भय है। बिजली चोर हों अथवा कोई और अपराधी, उत्तराखंड एक तरह से सॉफ्ट स्टेट ही है। न तो सरकार ने कभी कोशिश की और न उस तरह का मिजाज रहा है। ऐसे में दंड भय की बात करना बेमानी सा होता है। इस लिहाज से बिजली चोरी रोकना मौजूदा माहौल में ऊर्जा निगम के लिए दूर की कौड़ी ही लगता है, सो स्मार्ट मीटर से उसे उम्मीद की किरण नजर आती है। विडंबना यह है कि ईमानदार उपभोक्ता तो सरकारी फरमान मान लेंगे लेकिन उस प्रवृत्ति के लोग तो ठेंगे पर ही रखेंगे। तब लाइन लॉस कैसे रुकेगा, यह सवाल हमेशा बना रहेगा।
कनेक्टिविटी भी है बड़ी समस्या
स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने में कनेक्टिविटी एक बड़ी समस्या होगी। प्रदेश के कई दूरस्थ इलाके ऐसे हैं, जहां कनेक्टिविटी की स्थाई समस्या है। उत्तरकाशी का मोरी प्रखंड हो या सीमांत के दूसरे इलाके। कई कई दिनों तक लोग सिंगनल के लिए तरसते रहते हैं, जब स्मार्ट मीटर को रिचार्ज करवाना होगा तो उस समय कनेक्टिविटी अनिवार्य होगी अन्यथा अंधेरे में रहना मजबूरी होगी। शायद इस समस्या की ओर भी सरकार देख रही होगी किंतु जब तक इस दिशा में मुक्कमल व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक सफलता संदिग्ध बनी रहेगी। कई बार तो राजधानी में हो मोबाइल सिंगनल की समस्या से लोग दो चार होते देखे गए हैं, बाकी जगहों की स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
विधानसभा सत्र में भी उठेगा मामला
मंगलवार से उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो गया है। सत्र कितने दिन चल पाएगा, यह तो कोई दावे से नहीं कह सकता लेकिन इस दौरान विपक्ष द्वारा स्मार्ट मीटर का मुद्दा जरूर उठ सकता है। तिलकराज बेहड़ पहले ही इस आशय का ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में विपक्ष के मित्र विपक्ष होने की संभावना कम ही है।