उत्तराखंड

उत्तराखंड को दाग ही नहीं जख्म भी दे रहे रिजॉर्ट !

• दिनेश शास्त्री

देहरादून। धर्म-कर्म के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध देवभूमि उत्तराखंड को रिजॉर्ट के नाम पर शर्मसार किया जा रहा है। आप तीर्थाटन की पारंपरिक व्यवस्था पर नजर डालें तो पाएंगे कि अनादिकाल से इस देवभूमि में देश-विदेश से लोग पुण्य अर्जित करने आते रहे हैं, किंतु बदलते दौर में तीर्थाटन पर आधुनिक पर्यटन हावी हो गया है।

राजाजी नेशनल पार्क क्षेत्र में वनंत्रा रिजॉर्ट मालिक द्वारा उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी की हत्या के बाद यह बात विमर्श के केंद्र में आ गई है कि वन प्रांतर या दूरस्थ क्षेत्रों में धड़ाधड़ बन रहे रिजॉर्ट आखिर किस उद्देश्य से स्थापित हो रहे हैं? दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट विवेकानंद सेमवाल चिंता जताते हुए कहते हैं कि देवभूमि में घृणित कार्य के अड्डे के रूप में ये रिजॉर्ट उभर रहे हैं और यह इस धरती के अनुकूल नहीं है। वे कहते हैं कि गरीब घर की एक बेटी अपने परिवार को आर्थिक संबल देने के उद्देश्य से रिजॉर्ट में नौकरी करती है तो उसे अवांछित कार्य के लिए विवश किया जाता है। सेमवाल जोर देकर कहते हैं कि राज्य सरकार को राजस्व अर्जित करने की खातिर देवभूमि की सात्विकता को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।

आपको याद होगा, 2018 तक उत्तराखंड में गिनती के रिजॉर्ट थे, तो वे नियम कायदों से नियंत्रित भी किए जाते थे। किंतु 2018 में हुई इन्वेस्टर समिट के बाद प्रदेश के तमाम सुरम्य क्षेत्रों में जमीनों की जिस द्रुत गति से खरीद फरोख्त हुई और हर जगह रिजॉर्ट ही रिजॉर्ट नजर आने लगे। जल्दी से जल्दी मुनाफा कमाने और निवेश की गई रकम की प्रतिपूर्ति के लिए सारे वैध अवैध धंधे का पर्याय ये रिजॉर्ट बन गए।

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने भी इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया है। उपपा के पीसी तिवारी कहते हैं कि देवभूमि में बड़ी संख्या में खुले रिसोर्ट में धड़ल्ले से रेव पार्टी कल्चर, वेश्यावृति का चलन दुर्भाग्यपूर्ण है। इसकी रोकथाम बेहद जरूरी है। वे कहते हैं कि देवभूमि की बेटी अंकिता ने इसका प्रतिरोध किया तो उसे जान देकर उसकी कीमत चुकानी पड़ी। उसे अत्यंत बेरहमी से खामोश कर दिया गया। ऐसे ही आए दिन स्पा सेंटर में छापेमारी की ख़बरें आम हो गई हैं, जहां खुलेआम सेक्स स्कैंडल चल रहे हैं। जबकि सरकार इस घृणित प्रवृति से आंखें मूंदे हुए है। तिवारी के मुताबिक पिछले 7-8 साल से प्रदेश में इतने सारे रिसोर्ट और होटल हमारी जमीनों पर खुल गए हैं, उनकी सघन जांच होनी चाहिए। सरकार अब कुछ हरकत में आई है किंतु बीते सात आठ साल में प्रदेश का बहुत बड़ा नुकसान हो चुका है।

एसडीसी फाउंडेशन के प्रमुख अनूप नौटियाल ने रिजॉर्ट की भरमार पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है। वे कहते हैं कि हमें रिजॉर्ट, स्पा की संस्कृति से बहुत सावधान रहने की जरूरत है। हमारे राज्य को बेनामी संपत्तियों, अतिक्रमण की पेशकश की कोई आवश्यकता नहीं है, यह हमारे लिए आत्मघाती है। दो टूक बात कहने के लिए मशहूर नौटियाल ने यह भावनाएं अपने सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर करते हुए सरकार को आगाह भी किया है।

इस बीच ऋषिकेश से यह खबर आ रही है कि भाजपा के नेता के इसी रिजॉर्ट से अतीत में भी प्रियंका नाम की एक युवती गायब हो गई थी, कौन जानता है कि उसके साथ भी कुछ इसी तरह का हुआ होगा। रिजॉर्ट मालिकों ने तब उस पर रिजॉर्ट का सामान लेकर भागने का आरोप लगाया था। इस बार इसी रिजॉर्ट मालिक के बेटे ने खुद बेहद धूर्तता के साथ अंकिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी। भाजपा नेता के बेटे और उसके साथियों की करतूत की पड़ताल के लिए सरकार ने एसआईटी जांच के आदेश दिए तो हैं, किंतु प्रियंका के गायब होने की घटना का शायद ही खुलासा हो पाए क्योंकि जो रसूख आरोपियों का है, उसे देखते हुए बहुत ज्यादा उम्मीद करना बेमानी ही होगा।

शुक्रवार को देर रात नाक बचाने के लिए इस रिजॉर्ट पर बुलडोजर चला दिया गया, लेकिन लोग तो खासकर नौकरियों की बंदरबांट में ठगे गए युवा पूछ रहे हैं कि धामी सरकार के बुलडोजर को हाकम सिंह के रिजॉर्ट का रास्ता क्यों नहीं मिल रहा है? नियम कायदे तो वहां भी ताक पर रखे गए हैं। सत्ता के मिजाज को देखते हुए यही अंदाजा लग रहा है कि ज्यादा से ज्यादा मोरी का रिजॉर्ट कुछ दिन के लिए सील कर दिया जाएगा और जैसे ही लोग भूलने लगेंगे, हाकम को वापस चाबी सौंप दी जाएगी। वैसे इस बीच खबर है कि बुलडोजर का रुख मोरी के सांकरी की तरफ कर दिया गया है, इसपर आप भी नजर बनाए रखें। लोग बताते हैं कि वहां सब कुछ ठीक नहीं बल्कि दाल में काले के स्थान पर दाल ही काली है।

हालांकि इस बीच सरोवर नगरी नैनीताल से कुछेक रिजॉर्ट को सील किया गया है। सवाल पूछा जा सकता है कि क्या यह कदम पर्याप्त है? जानकार लोग बताते हैं कि ज्यादातर रिजॉर्ट ने सीवेज डिस्पोजल का मुक्कमल इंतजाम तक नहीं किया है जबकि सबने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी ले रखी है, यानी यह बोर्ड भी मौके पर जाने की जरूरत नहीं समझता। केवल फीस लेकर सर्टिफिकेट जारी कर देता है।

निष्कर्ष यह कि सरकार की नजर राजस्व अर्जित करने पर टिकी है और उत्तराखंड की संस्कृति तार-तार हो रही है। उत्तराखंड के दशक की क्या यही बानगी है? सवाल तो अपनी जगह पर कायम है। रिजॉर्ट शुकून के लिए होते हैं, उन्हें अय्याशी का अड्डा बनने की छूट तो नहीं दी जा सकती और न ही यह पर्यटन का स्वस्थ रूप ही है।

लेखक दिनेश शास्त्री उत्तराखंड के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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