
त्रषिकेश। नेपाली संस्कृत विद्यालय में आयोजित बैठक में संस्कृत शिक्षकां राज्य की द्वितीय राजभाषा संस्कृत के प्रति सरकार के उपेक्षित रवैये को लेकर रोष जताया। शिक्षकों ने सरकार पर संस्कृत भाषा के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया।
उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय प्रबंधकीय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. जनार्दन कैरवान ने कहा कि सरकार ने उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा निदेशालय और उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा परिषद को देहरादून से हरिद्वार शिफ्ट संस्कृत छात्रों के भविष्य को संकट में डाल दिया है। कहा कि परिषद देहरादून के नाम से पंजीकृत है। अधिनियम में भी स्पष्ट है कि परिषद का मुख्यालय देहरादून में होगा।
उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए हरिद्वार में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की स्थापना की गई थी। जिसके उपाध्यक्ष और कार्यकारिणी में संस्कृत भाषा के जानकार शामिल किए जाते थे, लेकिन वर्तमान सरकार ने नियमावली को बदलकर उपाध्यक्ष का पद ही समाप्त कर दिया है।
वहीं, डॉ. ओम प्रकाश पूर्वाल ने कहा कि वर्ष 2008 से संस्कृत विद्यालयों व महाविद्यालयों में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा 50 शिक्षकों को मानदेय दिया जाता था, उसे भी समाप्त कर दिया गया है। जो कि संस्कृत के गुरुकुलों को समाप्त करने की साजिश लगती है। कहा कि पहाड़ी क्षेत्र में कन्या संस्कृत महाविद्यालय में पद सृजन के शासनादेश और मान्यता संबंधी आदेश को निरस्त किया जाना भी दुर्भाग्यपूर्ण है। पिछले चार महिने से संस्कृत शिक्षकों को वेतन नहीं मिला है।
शिक्षकों ने चेताया कि सरकार ने गलत निर्णयों को वापस नहीं लिया तो संस्कृत संगठन, अध्यापक और छात्र मिलकर संस्कृत भाषा को बचाने के लिए आंदोलन को बाध्य होंगे।
बैठक में शान्ति प्रसाद डंगवाल, विनायक भट्ट, जितेन्द्र भट्ट, विजेन्द्र मौर्य, सुशील नौटियाल, विनोद गैरोला, विपिन बहुगुणा, आशीष जुयाल, नवीन भट्ट, मनोज कुमार द्विवेदी, सत्येश्वर डिमरी, कामेश्वर लसियाल, गणेश भट्ट, प्रेमचन्द नवानी, नवकिशोर, सुभाष चन्द्र डोभाल आदि मौजूद थे।