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फूलदेई पर बच्चों ने घरों की देहरियों में डाले रंग बिरंगे फूल

ऋषिकेश। उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के शुभारंभ पर तीर्थनगरी और आसपास के ग्रामीण इलाकों में पर्वतीय समाज के लोगोंं के घरों में नन्हीं बालिकाओं ने परंपरानुसार अपने-अपने घरों की देहरियों पर रंग बिरंगे फूल डाल कर सुख और समृद्धि की कामना की।

अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे नेगी ने फूलदेई पर्व पर बताया कि उत्तराखंड के अधिकांश इलाकों में चैत्र संक्रांति के दिन से फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। गढ़वाल और कुमाऊं के कुछ क्षेत्रों में आठ दिनों तो कुछ में महीने भर तक घरों की देहरियों पर हर रोज नन्हीं बालिकाएं ताजे फूंलों को डालती हैं।

उन्होंने बताया कि घरों की देहरियों पर फूलों को डालने के समय कई जगह बालिकाएं फूलेदई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, पूजैं द्वार बारंबार, फूले द्वार…. यानि आपकी देहरी (दहलीज) फूलों से भरी और सबकी रक्षा करने वाली (क्षमाशील) हो, घर व समय सफल रहे, भंडार भरे रहें, इस देहरी को बार-बार नमस्कार, द्वार खूब फूले-फले… गीत को गाती हैं।

डॉ नेगी ने यह भी बताया कि फूलदेई मनाने के लिए एक दिन पहले पहाड़ी क्षेत्रों में बच्चे शाम को रिंगाल की टोकरी लेकर फ्यूंली, बुरांस, बासिंग, आडू, पुलम, खुबानी के फूलों को इकट्ठा करते हैं। अगले दिन सुबह नहाकर वह घर-घर जाकर लोगों की सुख-समृद्धि के पारंपरिक गीत गाते हुए देहरियों में फूल बिखेरते हैं।

वहीं, इस अवसर पर कुमाऊं के कुछ स्थानों में देहरियों में ऐपण (पारंपरिक चित्रकला जो जमीन और दीवार पर बनाई जाती है) भी बनाते हैं। पर्व के आखिरी दिन पूजन किया जाता है। ‘घोघा माता फुल्यां फूल, दे-दे माई दाल चौंल’ और ‘फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार’ गीत गाते हुए बच्चों को लोग इसके बदले में दाल, चावल, आटा, गुड़, घी और दक्षिणा (रुपए) दान करते हैं।

पूरे माह में यह सब जमा किया जाता है। इसके बाद घोघा (सृष्टि की देवी) पुजा की जाती है। चावल, गुड़, तेल से मीठा भात बनाकर प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है। कुछ क्षेत्रों में बच्चे घोघा की डोली बनाकर देव डोलियों की तरह घुमाते हैं। अंतिम दिन उसका पूजन किया जाता है।

बताया जाता है कि पहाड़ में वसंत के आगमन पर फूलदेई मनाने की परंपरा है। यह त्योहार गढ़वाल और कुमाऊं के अधिकांश क्षेत्रों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बच्चों से जुड़ा त्योहार होने के चलते इसे खूब पसंद भी किया जाता है। फूलदेई पूरी तरह बच्चों का त्योहार है। इसकी शुरुआत से लेकर अंत तक का जिम्मा बच्चों के पास ही रहता है। इस त्योहार के माध्यम से बच्चों का प्रकृति और समाज के साथ जुड़ाव बढ़ता है। यह हमारी समृद्ध संस्कृति का पर्व है।

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