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‘जागर’ कठिन समय में एक जरूरी और ईमानदार पहल

• पुस्तक मेले में हुआ काव्यांश प्रकाशन से प्रकाशित किताब का लोकार्पण

नई दिल्ली। सामयिक हलचल, कला-सौंदर्य, साहित्य व संस्कृति को समेटे जागर का यह अंक ऐसे कठिन समय में एक जरूरी पहल है। कवि राजेश सकलानी व पत्रकार अरविंद शेखर के संपादन में प्रकाशित इस अंक में अधिकांश प्रतिष्ठित लेखकों व कवियों की रचनाएं सम्मिलित की गई हैं, जिसको पढ़ा व स्वागत किया जाना चाहिए।

यह बात विश्व पुस्तक मेले में काव्यांश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘जागर’ के लोकार्पण के अवसर पर वरिष्ठ कवि, पूर्व संपादक इब्बार रब्बी ने व्यक्त किए। कवि व अनुवादक प्रभाती नौटियाल ने कहा कि ये प्रयास स्वागत योग्य है, रचनाओं की विविधता के साथ यह अंक पाठकों को निश्चय ही पसंद आएगा।

कहानीकार व संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि वास्तव में जागर ऐसे इस कठिन समय में उन तमाम रचनाओं को सामने रखता है, जिस पर विमर्श किया जा सकता है। कहानीकार महेश दर्पण ने जागर पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। जागर के संपादक राजेश सकलानी ने विस्तार से प्रस्तुत अंक के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि इस अंक में आज़ादी के बाद के कुछ विद्वान लेखकों व युवा रचनाकारों के पाठ शामिल हैं। लोक भाषाओं में लिखित कुछ रचनाओं के हिंदी अनुवाद भी एक खंड में आये हैं।

उन्होंने कहा कि कुल जमा जागर का उद्देश्य ऐसी सृजनात्मक संस्कृति की तलाश है, जिसमें मानवीय गरिमा को कोई ठेस न पहुंचे। समापन पर काव्यांश प्रकाशन के प्रबोध उनियाल ने सभी अतिथियों का आयोजन में शामिल होने के लिए आभार व्यक्त किया।

लोकार्पण के अवसर पर साहित्यकार सुधांशु गुप्त, सुधेन्दु झा, केशव चतुर्वेदी, हीरालाल नागर, नंदकिशोर हटवाल, रमाकांत बेंजवाल, बीना बेंजवाल, गणेश कुकशाल गणी, अरुण असफल, शूरवीर रावत, सुजाता, पुष्पलता ममगाईं, तारा मेहरा आदि मौजूद रहे।

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