देहरादून आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समूचे भाषण में दो बाते बेहद चर्चित रही। एक अपने संबोधन को गढ़वाली भाषा में शुरू करना और दूसरा उनके द्वारा एक कविता भी सुनाना। तो शाम ढलने तक पूर्व सीएम हरीश रावत के भीतर का कवि भी जाग उठा। अब से करीब पौन घंटे पहले ही उन्होंने अपने कविता रूपी विचारों को पेश किया है।
आप भी उसका मुलाहिजा फरमाईए।
बकौल हरीश रावत- प्रधानमंत्री जी आये, जुमलों की बरसात कर गए। एक कविता भी उन्होंने सुनाई। मेरे मन में भी कुछ भाव उपजे, प्रधानमंत्री जी कहते हैं….
जब-जब मैं आता हूं, उत्तराखंड तेरे गीत गाता हूं,
कभी केदार का नाम लेकर, कभी गंगा का नाम लेकर,
मैं उत्तराखंड वादियों को बहलाता हूं,
उत्तराखंड वासियों को कुछ झूठ-मूट कुछ कहकर बहलाता हूं।
मैं जब-जब आता हूं, उत्तराखंड मैं तेरे गीत तुझको ही सुनाता हूं,
दूसरों ने गुफा बनाई, उसमें तप कर उसको अपना बताता हूं।।
ऑलवेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन पर भी अपना नाम खुदवाता हूं।
मंजूर चाहे वो कभी हुई हो, मैं प्रधानमंत्री हूं, मैं उसको अपना बताता हूं,
कुछ दे सकूं- न दे सकूं, मैं डबल इंजन का नाम लेकर मैं तुम्हारे वोटों को समेटने का काम करता हूं
जब डबल इंजन कुछ काम न कर पाए तो मुख्यमंत्री बदलकर मैं लोगों का ध्यान भटकाता हूं
कोरोना में कितना ही उत्तराखंड अपनों को खो गया हो,
मैं उनके नाम पर एक भी आंसू नहीं बहाता हूं, आपदा आए या कुछ आए,
मैं उसमें राजनीति ढूंढता हूं,उत्तराखंड तुझको कुछ दूं-न दूं,
मगर अपनी बातों से मैं हमेशा तेरा मन बहलाता हूं,
कुछ जुमले, कुछ बातें जो तुमसे जुड़ी हैं,
उनको कह-कहकर मैं तुम्हारे मन को उकसाता हूं,
कुछ धरती पर दिखाई दे या न दिखाई दे,
किसी ने भी कुछ किया हो, मैं उस सबको अपना बताता हूं,
रेडियो टेलीविजन अखबार पर मेरा एकाधिकार है,
जो मैं तुमको सुनाता हूं वही उनसे छपवाता हूं, उनसे आपको बतवाता हूं।
मैं प्रधानमंत्री हूं, जुमलों से मुझको बड़ा है प्यार और
उत्तराखंड तुझको बहलाने के लिए मैं हर बार कुछ नये जुमले गढ़ कर लाता हूं,
मैं जब-जब उत्तराखंड आता हूं, तुमको कुछ नये गीत सुनाता हूं।।