ऋषिकेश (शिखर हिमालय)। विधानसभा चुनाव की गर्माहट अब ऋषिकेश में भी बढ़ने लगी है। पिछले साढ़े चार साल तक दुबके नेता बाहर निकल चुके हैं। बैठकों, कार्यक्रमों, प्रेस कॉन्फ्रेसों, विज्ञप्तियों, दावों, प्रतिदावों के दौर चल पड़े हैं। मीडिया के कंधों का सहारा बखूबी मिलने लगा है। बावजूद इसके अपनी जमीनी हकीकत वो भी जानते हैं और उनके समर्थक भी। फिर भी जीत के दावे सबकी जुबां पर एकसार से हैं।
आज बात कांग्रेस की
ऋषिकेश विधानसभा में कांग्रेस 15 साल से सूखा झेल रही है। यहां तक कि निकाय और पंचायतों में भी उसका जमीनी आधार लगातार छिजता चला गया। फिर भी पार्टी के भीतर कुछ भी नहीं बदला। खेमेबंदी आज भी सरेआम है। जो 2007 की हार के कारण माने गए, वे भी मंचों पर सक्रिय हैं। जिन्होंने 2012 और 2017 की हार से सबक नहीं सीखे, उनकी जुबां पर जीत के दावे लहलहा रहे हैं। यानि 2007 से 2021 तक के वक्फे में ऋषिकेश काग्रेस कुछ गिनेचुने नामों से आगे नहीं निकल सकी। जिसका फलित पिछले तीन चुनावों में भाजपा के पक्ष में रहा।
इसबार कांग्रेस में दावेदारों को उम्मीद है कि ‘बिल्ली के भाग से छींका’ जरूर टूटेगा। उनके हिस्से का रूठा हुआ सावन फिर से लहलहाएगा, यानि ‘अपना टाइम भी आएगा’ टाइप। यही वजह है कि मैदान में ऐसे लोग फिर से आए हैं जो निकाय से लेकर विधानसभा तक हार चुके हैं। जो बिलकुल फ्रेश दावेदार हैं, बताते हैं कि उनमें से कुछ अपने घरों से बाहर तभी निकलते रहे जब क्षेत्र में बड़े नेताओं का कार्यक्रम आयोजित हुआ, तो कुछ ऐसे भी जिनकी दावेदारी अपना कद बढ़ाने तक ही सीमित बताई जाती है।
जमीनी हकीकत पर जानकार बताते हैं कि विधानसभा क्षेत्र में त्योहारों पर शुभकामनाएं देते पोस्टर, होर्डिंग्स, बैनर और मीडिया में रोज ब रोज छपती खबरें ही सार्वजनिक तौर पर दावेदारों की सियासी जमा पूंजी है। हालांकि यहां भी ‘एक कार्यक्रम दो विज्ञप्ति’ का संघर्ष भी सरेआम है।
तो फिर कांग्रेस और उसके दावेदार अपनी इसी जमा पूंजी के भरोसे जीत की उम्मीद पाले हुए है? जानकार इससे आगे दो-एक और टैग लाइनों को भी जीत के दावों के आधार में शामिल करते हैं, एक संभावित ‘एंटी इनकंबेंसी’ और दूसरा विरोधी दल में ‘भीतरघात’।
खैर, चुनाव का नतीजा किसके हित में आएगा, यह तो मार्च 2022 में पता चलेगा। फिलहाल तो पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी के रिजल्ट पर नजर है। कौन जनता के वोट से पहले स्क्रीनिंग कमेटी के सर्वाधिक अंकों का हकदार बनता और कौन अपनी लकुटिया-कंबलिया समेटता है। सो, आगे- आगे देखिए होता है।