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अस्कोट-आराकोट अभियान पर 15 को दिल्ली में नाटक

• दिनेश शास्त्री

हिमालयी समाज, संस्कृति और प्रकृति को समझने की दिशा में पांच दशकों से चल रहे अनूठे जन-अभियान पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ’पहाड़’ समूह की दिल्ली शाखा एक विशेष नाट्य प्रस्तुति “यात्राओं की यात्रा“ का भव्य मंचन किया जा रहा है। नाटक का मंचन 15 दिसंबर को शाम 6 बजे कमानी सभागार, मंडी हाउस, नई दिल्ली में होगा।

यह नाट्य प्रस्तुति उत्तराखंड के सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले अस्कोट-आराकोट अभियान पर आधारित है। एक ऐसा जन-अभियान जो 1974 में शुरू हुआ और आज भी समाजिक चेतना को दिशा दे रहा है।

यह यात्रा केवल पहाड़ों के पार जाने की कथा नहीं, बल्कि उत्तराखंड के पर्वतीय समुदायों के जीवन, संघर्ष, संवेदनाओं और सामाजिक-सांस्कृतिक यथार्थ की सशक्त प्रस्तुति है। नाटक दशकों के सफ़र को बेहद संवेदनशीलता और प्रामाणिकता के साथ मंच पर उतारने का प्रयास कर रहा है।

“यात्राओं की यात्रा” केवल एक नाटक नहीं, बल्कि एक संवेदी सफ़र है। 1974 से आज तक जारी उस ऐतिहासिक अभियान का मंचीय रूपांतरण, जिसने पहली बार दूरदराज़ पर्वतीय क्षेत्रों की वास्तविकताओं, जनजीवन और सामाजिक चुनौतियों को व्यापक रूप से सामने रखा। यह प्रस्तुति पहाड़ों के पार की भौगोलिक यात्रा से आगे बढ़कर, वहाँ के लोगों के दिलों और धड़कनों की यात्रा को दर्शाती है।

यह यात्रा 1974 में सु-विख्यात पर्यावरणविद् स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा और जननायक श्रीदेव सुमन के जन्मदिवस के दिन प्रारंभ हुई थी। जिसे ’पहाड़’ के संस्थापक, प्रसिद्ध लेखक एवं इतिहासकार पद्मश्री प्रोफ़ेसर शेखर पाठक के नेतृत्व में हर दशक में सम्पन्न किया जाता रहा है।

इस महत्त्वपूर्ण यात्रा के पांच दशकों को समर्पित नाटक “यात्राओं की यात्रा“ का लेखन डॉ. कमल कर्नाटक ने किया है। निर्देशन ममता कर्नाटक द्वारा किया जा रहा है। कार्यक्रम का संयोजन ’पहाड़’ (दिल्ली) के प्रभारी चंदन डांगी द्वारा किया गया है।

डांगी ने बताया कि भारत-नेपाल सीमांत पर स्थित पांगू और अस्कोट से लेकर उत्तराखंड व हिमाचल के सीमांत आराकोट तक लगभग 1150 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा का उद्देश्य हमेशा हिमालयी जीवन, वहाँ के परिवर्तनों, चुनौतियों और सामाजिक-पर्यावरणीय स्थितियों को प्रत्यक्ष रूप से समझना रहा है।

नाटक “यात्राओं की यात्रा“ इसी बहु-स्तरीय अनुभव और परिवर्तनशील पांच दशकों की कथा को प्रभावशाली रूप से सामने लाता है। इस मंचन में दिल्ली-एनसीआर से जुड़ी कई प्रवासी सांस्कृतिक संस्थाओं के लगभग चालीस कलाकार भाग ले रहे हैं, जो इस प्रस्तुति को और अधिक सशक्त बनाते हैं।

संयोजक चंदन डांगी के अनुसार नाटक का एक मुख्य स्तंभ है इसका डिजिटल विजुअल डिज़ाइन। दशकों की यात्रा को दर्शाने वाले स्लाइड्स, प्रोजेक्शन्स और दृश्य सामग्रियाँ दर्शकों को समय की परतों के भीतर ले जाएंगी। हर युग की अपनी दृश्य भाषा- तस्वीरें, आर्काइव, रंग और प्रतीक कथा को और सशक्त बनाएंगे।

प्रस्तुति का संगीत उत्तराखंड की पारंपरिक लोक-धुनों और जनांदोलन गीतों पर आधारित है, जो नाटक को सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है। संगीत का पूरा ताना-बाना भावनाओं, आंदोलन और सामुदायिक ऊर्जा को उजागर करेगा, जिससे दर्शक पहाड़ों की आत्मा को महसूस कर सकेंगे।

‘पहाड़’ समूहः यात्रा से परे
डांगी बताते हैं कि ’पहाड़’ केवल एक यात्रा आयोजक नहीं, बल्कि हिमालय केंद्रित शोध, प्रकाशन और जन-जागरूकता का एक सक्रिय संस्थान है। डॉ. शेखर पाठक के मार्गदर्शन में इस समूह ने हिमालय के विविध क्षेत्रों, आपदा प्रभावित इलाकों और उच्च हिमालयी पथों पर अनेक अध्ययन यात्राओं का आयोजन किया है, जिससे प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर गहन समझ विकसित करने में मदद मिली है।

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